जो कभी हुआ ही नहीं
जो कभी मिला ही नहीं
जिसका कोई वजूद रहा ही नहीं
मैंने उस इश्क को पीया है
और जीया है साहिबा
यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता
दिल धड़कता भी हो
साँस आती भी हो
रूह पैबस्त भी हो
मैंने हर उस लम्हे में
खुद को मरते देखा है साहिबा
यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता
आँच जलती भी रही
रोटी पकती भी रही
भूख मिटती भी रही
मैंने उस चूल्हे की तपन में
खुद को सेंका है साहिबा
यूँ अपने ही नाखूनों से अपनी ही खरोंचों को खरोंचना आसान नहीं होता